Sunday 3 January 2016

साझा नभ के हाइकु

412.
मन मन्दिर
अंतस का उजाला
प्रार्थना दीप|

411.
हवा की दया
खुशबू बन बिखरी
पुष्प है मौन|

410.
नभ की छाँव
नर्म दूब बिछौना
दीनों का सुख|

409.
दीये की लौ
आशाओं का निशीथ
विलीन तम|

408.
ग्रीष्म की तृषा
हँसकर झेलता
गुलमोहर|

407.
प्रश्नों के घेरे
शून्य में उपजते
पाते सृजन|

406.
नींद का गाँव
स्वप्न बिछौना ठाँव
पसरी यादें|

405.
मौन अधर
कलम का संवाद
अमिट छाप|

403.
कँटीली राह
अपमान वेदना
स्वत्व का ज्ञान|

402.
धूप सघन
मातृ-स्पर्श आनंद
फुहार सम|

401.
धरा का गर्भ
बीज नर या मादा
भाव समान|

400.
विदा करे माँ
आँचल में बाँध दी
सीख पोटली|

399.
पारदर्शिता
संवाद की मिठास
सुलझे रिश्ते|

398.
टिके अतिथि
हिली घर की नींव
ध्वस्त बजट|

397.
श्रीलोलुपता
राक्षसी प्रवृत्तियाँ
दहेज मृत्यु|


396.
व्याकुल व्योम
माह भर प्रतीक्षा
पूनम हुई|

395.
चिहुँका मौन
आकुल स्तब्ध सत्य
चिल्लाता झूठ|

394..
पसारे पाँव
जीवन धूप-छाँव
जग रहस्य|

393.
म्लान में उगे
प्रभु चरण चढ़े
गुणी कमल|

392..
मन पखेरु
पहरे बेअसर
निर्भय उड़े|

391..
रिश्तों में छल
हृदय-चंद्र डसे
ग्रहण लगे| 

390.
आधुनिकता
बेख़ौफ़ अमर्यादा
सहमे वृद्ध|

 389.
कर्म की पूजा
परिश्रम आहुति
फल रसीले|

388.
ओक में श्रम
एक चिथड़ा सुख
नारी के नाम|

387..
पग बेदर्द
कहती पगडंडी
दूब का दर्द|

386.
जड़ बिछोह
बन गया अधीरसैलाबी नीर|

385.
दुर्वा की नोक
ज्यूँ काँधा हो पिता का
झूला तुहिन|

384.
सागर ध्यानी
मौजों को दे रवानी
पूर्ण चन्द्रिका|

383.
सिंधु की शांति
सुनामी का संकेत
चौकस मन

382.
नभ से उँची
सागर से गहरी
कवि कल्पना|

381.
नाप ले नभ
हौसलों की उड़ान
मन की शाक्ति|

380.
प्रसव पीड़ा
मातृत्व का गहना 
नारी श्रृंगार| 

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