Wednesday 18 March 2015

कचनार

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372
आया बसंत
खिलता कचनार
हुआ गुलाबी|
371
हवा की गोद
कचनार की कली
करे प्रमोद|
370
सिरों पर बँटे
केन्द्र में मिले रहें
ये कचनार|
369
श्वेत घाघरा
लाल छींट की धारी
है कचनारी|
368
श्वेत चदनी
सफ़ेद कचनार
नयनसुख|
367
मस्त पवन
कचनार की खुश्बू
ले गया दूर|
366
शांत सौम्य सा
राहों में कचनार
जोहता बाट|
365
आँखों में बसी
कचनारी सूरत
पावन लगी|
364
यादों में बसा
सलोना कचनार
साथ में तुम|
363
हवा हिंडोला
जा बैठा कचनार
हौले से डोला|
*ऋता शेखर 'मधु'*

Sunday 1 March 2015

फागुनी ताल

362
फागुनी ताल
रस रंग बिखरे
मन बासंती|
361
मन का जोगी
बना रूप का लोभी
गा उठा फाग|
360
खिले पलाश
जोगन वन घूमे
बासंती आस|
359
प्रीत में बसी
रंगों की छिटकन
मन भ्रमर|
358
मोहक खुश्बू
चुरा कर ले गई
बासंती हवा|
357
भीनी सुगंध
टपका बौर रस
मन बावरा|
356
बोले है कागा
कुहकी कोयलिया
पाहुन आए|

*ऋता शेखर 'मधु'*