Sunday 23 March 2014

आई गर्मी

242
गया बसंत
सूख रहे अधर
तपता तन|

241

भीषण ताप
ठंडी मिली फुहारें
बुझती प्यास|

240

जल अनंत 
सागर ने समाया 
काम न आया

239

सिंधु का जल
रखता मन खारा
लगे न प्यारा|

238

जल -संग्रह
पीढ़ी का संग्रहण
सीख ले मनु|

237

शीतल वाणी
मिले जल शीतल
खुशी जिह्वा की|

236

खीरा है हीरा
जल का संचयन
जेठ की गर्मी|

235

सोंधा शीतल
घट में भरा जल
ग्रीष्म की तृप्ति !!

234

माटी का घट
लागे है पनघट
तृप्त है मन|

233

प्यासे परिंदे
दर दर भटके
मिली न बूँद|

232

थका पथिक
धरती की दरारें
नीर की आस

Wednesday 19 March 2014

राखी की लाज - ऋता

231

सबसे प्यारा

लगे इस जहाँ में

भाई हमारा ।

 230

स्नेह दर्शाता

रेशम राखी-धागा

रक्षा का वादा।

229

श्रावणी झड़ी

बहना ले के खड़ी

राखी की लड़ी।

228

रेशम-धागे

स्नेह-बंधन बने

टूट न पाए ।

227

राखी की लाज

सदा तुम निभाना

वादा दो आज ।

226

शुभ-आशीष

सदा तुम्हारे लिए

भाई मेरे ।

225

रक्षाबंधन

पर्व दिव्य-प्रेम का

बताने आता।

224

सजी थालियाँ

कुंकुमराखी संग

मिष्टान्न सजे ।

223

भइया आया 

श्रावणी पूर्णिमा को

उल्लास छाया ।

222

भाई हों सुखी

आशीर्वादों की झोली

बहनें भरें ।

-0-

पाती आई है - ऋता

221
सजनी भागी
पाती सजन की हो
आस ये जागी ।
220
पुत्र -कुशल
राहत मिल जाती
पाती जो आती ।
219
चिट्ठी में फूल
मीठे दर्द का शूल
कहीं चुभा है ।
218
नियुक्ति -पत्र
नवीन जीवन का 
आ गया सत्र ।
217
शब्दों में प्रीत
प्रफुल्लित है मीत
होठों पे गीत ।
216
तार का आना
मन का घबड़ाना
किसी का जाना ।
215
ख़त जो आए
कौन हँसे या रोए
जान न पाए ।
-0-

छिटकी चाँदनी - ऋता

214
शुभ्र धवल
शरद्- पूर्णिमा का ये
निकला चाँद ।
213
दूध-चाँदनी
श्वेत कमल पर
थिरक उठी ।
212
चन्दा को देखे
निर्निमेष चकोर
हो गई भोर।
211
शरद-पूनो
रुपहली किरणें
झिलमिलाईं ।
210
पूनो की रात
मधुरिम सी आस
बनी है खास ।
209
चाँद ने छेड़ी
मधुमय रागिनी
हँसी चाँदनी ।
208
चाँद को देख
सागर भी मचला
मिलने चला।
207
चाँदनी फैली
लहरें बनी वीणा 
संगीत फूटा  ।
206
चाँदनी रात
ले के हाथों में हाथ
करें क्या बात ।
205
शरद पूर्णिमा
सोलह कला-युक्त
खिला है चन्द्र ।
204
अमृत -वर्षा
चाँदनी की किरणें
धरा पर करें।
203
मनभावन
शरद की पूनम
कृष्ण का रास ।
202
नभ से बही
सागर में समाई
शुभ्र चाँदनी ।
201
निकला चाँद
उजला उत्तरीय
नभ में फैला ।
-0-

धरा का चाँद - ऋता

200
सदा दमके
सिन्दूर सुहाग का
चन्द्र-दीप सा 
199
रहे सदा ही
जीवन सुवासित
पारिजात-सा ।
198
सिन्दूरी आभा
सोहे मुख-मण्डल
नव- दुल्हन 
197
घर-आँगन
स्नेह-प्यार के दीप
जगमगाएँ 
-0-

थका पथिक - ऋता

196

विरासत में
शुद्ध पर्यावरण
हमने पाया ।
195
कारखानों ने
आधुनिक युग में
जाल फैलाया।
194
सघन धुआँ
लुप्त वन्य-जीवन
रास न आया।
193
कुछ न सोचा
पॉलिथिन जलाया
विष फैलाया।
192
किरणें आईं
अल्ट्रावायलेट-सी
बूढ़ी है काया।
191
हवा का धुआँ
फेफड़ों पर बड़ा
ज़ुल्म है ढाया।
190
थका पथिक
पाए विश्राम कहाँ?
मिली न छाया।
189
खाद ने छीना
फल-सब्जी का स्वाद
कोई क्या खाए।
188
कटी है डाल
पपीहा या कोयल
कोई न गाए।
187
जल अगाध
पीने योग्य है थोड़ा
करो न जाया।
186
बाग उदास
जहरीली हवाएँ
उन्हें डराएँ।
185
आई बहार
कोमल -सी कलियाँ
खिल न पाईं।
184
कोमल दूब
जमीं है पथरीली
कैसे वो झाँके?
183
मिट्टी की खुश्बू
जमे सिमेंट तले
सिसक रही।
-0- 

आई दिवाली - ऋता

182
स्नेह का दिया
भावों का तेल भरे
प्रदीप्त हुआ।
181
शान से खड़ी
दिए की लौ तनी
तम से लड़ी ।
180
सितारे उड़े
अद्भुत से नजारे
नभ में दिखे।
179
फ़लक हँसा
कंदील को उसने
चाँद समझा ।
178
थरथराई
हाथों का संबल पा
लौ मुसकाई ।
177
बिटिया रानी
नन्हे हाथों से गढ़े
नन्हे घरौंदे।
176
छुपा है चाँद
धरा की रौशनी से
शरमा गया।
175
टिकती नहीं
घूमतीं घर-घर
चंचला लक्ष्मी।
174
चौका चंदन
सोहे घर आँगन
लक्ष्मी-वंदन।
173
आई दिवाली
दिए रौशन रहें
स्नेह-ज्योत से।
-0-