242
गया बसंत
सूख रहे अधर
तपता तन|
241
भीषण ताप
ठंडी मिली फुहारें
बुझती प्यास|
240
जल अनंत
सागर ने समाया
काम न आया
239
सिंधु का जल
रखता मन खारा
लगे न प्यारा|
238
जल -संग्रह
पीढ़ी का संग्रहण
सीख ले मनु|
237
शीतल वाणी
मिले जल शीतल
खुशी जिह्वा की|
236
खीरा है हीरा
जल का संचयन
जेठ की गर्मी|
235
सोंधा शीतल
घट में भरा जल
ग्रीष्म की तृप्ति !!
234
माटी का घट
लागे है पनघट
तृप्त है मन|
233
प्यासे परिंदे
दर दर भटके
मिली न बूँद|
232
थका पथिक
धरती की दरारें
नीर की आस