Wednesday 19 March 2014

आई दिवाली - ऋता

182
स्नेह का दिया
भावों का तेल भरे
प्रदीप्त हुआ।
181
शान से खड़ी
दिए की लौ तनी
तम से लड़ी ।
180
सितारे उड़े
अद्भुत से नजारे
नभ में दिखे।
179
फ़लक हँसा
कंदील को उसने
चाँद समझा ।
178
थरथराई
हाथों का संबल पा
लौ मुसकाई ।
177
बिटिया रानी
नन्हे हाथों से गढ़े
नन्हे घरौंदे।
176
छुपा है चाँद
धरा की रौशनी से
शरमा गया।
175
टिकती नहीं
घूमतीं घर-घर
चंचला लक्ष्मी।
174
चौका चंदन
सोहे घर आँगन
लक्ष्मी-वंदन।
173
आई दिवाली
दिए रौशन रहें
स्नेह-ज्योत से।
-0-

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